अब आगे क्या?

 

कभी कभी जब राहें चलते चलते एक अंत पर आती हैं

तो खुद से मन पूछ बैठता है- अब आगे क्या?
बस यही है अंत सभी उड़ानों का?
क्या सचमुच यही है अंत-
अनंत में ढूँढता है उत्तर अपने ही प्रश्न का

एक वक़्त था जब पैरों में सामर्थ्य नहीं था खड़े होने का
ऊँगली पकड़ संभलते, अपनी राह तय करते थे कच्ची उम्र में
कभी कभी भ्रम होता था पंछियों की तरह आज़ाद होने का
खुद ही लड़खडाते बढ़ उठते किसी अनजान सड़क पर तब
फिर जब थक जाते किसी मोड़ पर पहुँच कर,
मुड कर बेबसी और मासूमियत भरी आँखें तरेर कर कहते-
बस अब नहीं चला जाता—- मुझे गोदी ले लो न माँ ….

आज भी कदम थक गए हैं वापस
लेकिन मुड कर देखने पर कोई नहीं है
गोद में ले जाने वालों को तो कब का छोड़ आये हैं पीछे
यकीन दिला आयें हैं अपने परों का जो कभी ऊग ही नहीं पाए
अपना घोंसला अब अपना नहीं रहा,
खानाबदोशी ही ज़िन्दगी बन गयी है अब तो

लेकिन आज जो रास्ते ख़त्म हो गए हैं
कौन है जो ढाढस बंधायेगा?
न अब वो स्कूल है और न कोई बचपन का साथी
जो छुप छुप कर देखा करता था
पीछे से साइकिल की घंटी बजा कर चाकलेट दिया करता था

अगर कोई एक राह है बाकी भी तो
कौन है यहाँ जो मेरी गलतियां गिनाएगा
कौन सा खडूस बुड्ढा मास्टर मुझे बस एक छड़ी मार कर
वापस अपनी क्लास में बुलाएगा
फिर बाद में प्यार से समझाएगा नयी जेनरेशन की प्राब्लेम

पीछे छूटे किसी मोड़ से कभी क्या आएगी कोई पुकार मेरे लिए?
शोर के इस भीड़ में क्या मैं खुद को भी सुन पाऊँगी कभी?
सवाल ही सवाल हैं आस पास मेरे जिनके जवाब इस रेत की तरह हैं
जो मुझ से अटखेलियाँ  करते हुए गोल गोल घूम हवा में उड़ रहे हैं
हाथ बढाऊं तो फिसल जाते हैं
जो मुहं मोडूं तो आँखों में चुभ आते हैं

अब आगे कोई ज़मीन नहीं…. बस खुला आसमान और गहरी खाई है
या तो ऊपर उड़ जाऊं या गहराइयों में समां जाऊं
पीछे छूटी दुनिया मुझे अपनाने को तैयार नही
पुनः मन मेरा शुन्य में ताक रहा है और खुद से ही पूछ रहा है-
अब आगे क्या?
अब कोई जवाब नहीं बस सवाल मेरे पास है
जिन हाथों ने धरती पर संभाला था
उन्ही हाथों से पहली उड़ान लेने की आस है

अब इन परों को अज्ञात में धकेले जाने का इंतज़ार है ……..

4 thoughts on “अब आगे क्या?

  1. Take heart…The (mis)adventures of today are the nostalgia of tomorrow.

    Some day in the future, sitting on a stout branch of a tall tree, watching the tumultous world beneath, you will remember your uncertain first flight with fondness.

    Nice poem.

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