Raw roads

घरों में झाडू, पोंछा, बर्तन का काम करती है वो, सुबह अपनी घर का सारा काम कर अपनी बड़ी बेटी को हज़ारों हिदायतें दे, दूधमुही छुटकी (ऐसा घरवाले पिछले चार साल से बता रहे हैं, औटीज़्म  के बारे में कहाँ किसी ने सुना है! )को अक्सर स्मार्टफोन में व्यस्त रहने वाली बड़ी बेटी के बराबर ननद के हवाले कर वह आठ दस किलोमीटर पैदल चल शहर आती है.

 दो घर में काम ख़त्म कर हमारे घर की बारी तीसरे नंबर पर आती थी, दिन के कुछ 12:00, 1:00 बजे. रोज़ माताश्री की देरी वाली डांट सुन कुछ ज्यादा श्याम वर्ण चेहरे पर झक्क सफ़ेद सुन्दर दँतपंक्ति दिखा हँसते हुए बस वो यही बोलती -” हाँ देरी हो गईल “! जाने क्यूँ फिर रसोई में बर्तन समेटते हुए अपनी आप से कुछ बातें करने लगती. गाँव में सब उसे बाउरी कहते, यद्यपि उसकी कार्यकुशलता देख ऐसा बिलकुल नहीं लगता की वो बौरा गयी हों.

उस दिन डेढ़ बजे आगमन हुआ, रोनी सूरत बनाये अस्तव्यस्त बिना कंघी किये केश विन्यास के साथ, कल वाली ही साड़ी पहने जो कल से थोड़ी औऱ मैली हो गयीं थी. कुछ पूछो तो कोई जवाब नही, पर बांहों पर पड़े गहरे काले निशान कुछ औऱ ही कहानी कह रहे थे. हम लोग थोड़ा झिझक रहे थे पूछने में, वैसे भी अपनी निजी ज़िन्दगी के बारे में बात करना लोग पसंद नहीं करते.इतने में मेरी मोहतरमा ननमुनिया अपनी सवालों के बाण लिए कूद पड़ी. 1. “आंटी आप इतना देरी से क्यूँ आयीं? “2. ” आप बिना नहाये आयी क्या? छी बदबू!”3. “कल भी गुलबाबी, आज भी गुलबाबी साड़ी? तुमका फेवरेट रंग भी यही है क्या? मेरा भी है गुलबाबी “4. “उदास क्यूँ लग रही हों आंटी, थोड़ा इशमाइल करो तो, रुको मेरी मम्मा के पास है, गोल गोल बिंदी, तुम आज ये भी भूल गयीं ओफ्फोह!”5. “ये हाथ में क्या हुआ, बन्दर काट लिया क्या? बाप रे इतना लाल घाव. रुको हम क्रीम लगा देते हैं अभी, तुम यहीं बैठो.”

जितनी देर में बिंदी, क्रीम लगा, एक प्यारे खेल का अनावरण हुआ, मोहतरमा ननमुनिया की आंटी के आँखों से अविरल नमकीन पानी की धारा निकलते रही, तत्पश्चात चेहरे पर उदासी का स्थान स्मित मुस्कान, तत्पश्चात उसी चित् परिचित हँसी ने ले ली. इतना लाड़ तो खुद की बेटियों ने भी नहीं किया होगा कभी! जवाब तो शायद उसके पास नहीं थे, ना तो अपनी देरी से आने का, ना अस्त व्यस्त हाल का, ना अपनी छुटकी की अजीब बीमारी का जो उसे ढंग से बड़ा भी नहीं होने दे रही, ना अपनी मर्यादा अक्सर नशे की हालत में खो देने वाले पति का, ना तो अपने  दर्द से कसमसाते बाजू का जिसने गत रात मोटे डंडे की मार बस सह ली!

बहरहाल, जब बन्दर के काटने का इलाज हो चुका तो मुफ्त में सलाह भी दे दी गयीं, ” आंटी आज हमको अपनी घर ले चलना तो, मेरे पास भी एक मोटा डंडा है, उस बन्दर को इतना मारेंगे ना की वो एकदम भूल जायेगा काटना! ” इलाज तो शायद मोहतरमा ननमुनिया वाला ही सही है, लेकिन उसकी आंटी के अंदर इतनी शक्ति अभी नहीं आयी की वो उस दुष्ट बन्दर को सबक सीखा सकें.

जहाँ मैं सिर्फ विचारों के आवेग से तलवार, कटार, बन्दूक चला सकती हूं, मेरी ननमुनिया संवेदनशीलता कार्यन्वित करना जानती है. नयी पौध अपनी मन को प्रकट करना औऱ उसपे अमल करने में विश्वास रखती है. नाज़ सा हो आया!

-Shivangi

#autismawareness #domesticviolenceawareness

About 1 in 100 children in India under age 10 have autism, and nearly 1 in 8 has at least one neurodevelopmental condition.

Given that 68% of the Indian population lives in rural areas, there is a greater need to engage with domestic violence in villages. Women in rural areas (36%) are more likely than those in urban areas (28%) to experience one or more forms of spousal violence (IIPS 2017: 569)

Data and Pic.courtesy- Google, Pinterest

Leave a comment