The topic was suggested by my frnd Ruchi…so readers, if u find the poem pathetic… just say “Go n die”…. 🙂
जब मैं हिन्दी फिल्मों के बारे में सोचने बैठती हूँ तो कई फिल्में और उनके संवाद मेरे ध्यान में आते हैं जो टिप्पनीय होते हैं । ऐसा ही एक संवाद है फ़िल्म ” ओम् शान्ति ओम्” का जो मुझे अनायास ही बहुत आकर्षित करता है। वो कुछ इस प्रकार है :
एक चुटकी सिन्दूर की कीमत तुम क्या जानो ……
सुहागन के सिर का ताज होता है ये एक चुटकी सिन्दूर……
ये शब्द जब सिनेमा हॉल के चित्रपट से छूटते हैं ,
अंधेरे को चीर तीर की तरह निकलते हैं,
चमकता है हिरोइन का चेहरा सुंदर और दमकता है चुटकी भर सिन्दूर
और दर्शकों के मुँह से निकलती है वाह वाही भरपूर ।
अब जब मेरे सभी मित्र ये संवाद दोहराते हैं और हँसते हैं , ये शब्द मेरे कानों में भी देर तक गूंजते हैं…
मेरे ध्यान में भी आता है ये “एक चुटकी सिन्दूर”…………….
कहने को तो एक चुटकी की कहानी है,
लेकिन देखो तो इसकी महिमा बड़ी निराली है,
थोड़ा सा पाउडर ही तो है लाल रंग का :
पूजा करो तो टीका बन जंचती है,
खेलो तो अबीर बन उड़ती है,
ललाट पे सजा लो तो कुमकुम बन चमकती है ,
और शर्मशार करो तो…पानी में मिलकर खून बनकर बह निकलती है ।
हर सीरियल की नायिका को खलनायिका से अलग करने का काम करता है नायिका की मांग में तो किलो भर का पड़ता है और कहानी की तरह अंतहीन लगता है और खलनायिका का पाव भर लाल रंग जो बेचारा मांग तक भी न पहुंचता है
ललाट पर ही सांप बिच्छू बन ख़त्म हो जाता है और फैशन स्टेटमेंट बन पत्रिकाओं में आता है।
मजाक छोड़कर यदि थोड़ा संजीदा हो जाएँ तो………
बलि के हर बकरे को हलाल करने से पहले उसे गंगाजल का हलाहल पिलाया जाता ही
मीठा खिलाकर पूजा की आरती ली जाती है
और चढाया जाता है चुटकी भर सिन्दूर
एक चुटकी भर जो आश्वाशन है, स्वागत है , अन्तिम यात्रा का दर्शन भी ।
ममता को लपेटे , लाज का घूंघट कर
जब एक नव वधु पायल बजाती द्वार पर आती है,
एक कुटुंब के स्वर्णिम भविष्य के जिम्मेदारियों का बोझ साथ लाती है,
बचपन की यादें, किशोरी के सपने, सखियों की अठखेलियाँ
सब कुछ हटा जाती है मष्तिष्क से एक रक्तिम रेखा
जहाँ एक अग्नि परीक्षा भी स्त्री की अस्मिता की साक्षी न बन पाती है,
वहीं अलकों के बीच दबी एक लकीर वेश्या को भी पूजनीय दिखाती है ।
किंतु जब यही लकीर दो सम्प्रदायों के बीच की सरहद बनती है,
दो हिस्सों में काट दी जाती है
और पानी में मिल लहू की अक्षुण पिपासा बन जाती है।
2 responses to “एक चुटकी सिन्दूर”
a tricky one indeed……..how d poem took a turn frm cmpletely filmy way to a bare fact………gud one………………..
LikeLike
very gud 1, this is poetry for you to recite at hasya kavi sammelans..
LikeLike